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"देसी गाय और अंग्रेजी गाय: अंतर और महत्व"

इस ब्लॉग से हमें यह सीखने को मिलता है कि देसी गाय और अंग्रेजी गायों में कौन-कौन से अंतर हैं।



देसी गायों की पहचान:

देसी गायें, जो भारतीय नस्लों में आती हैं, भारतीय भूमि पर ही पैदा होती हैं और उनकी विभिन्न नस्लों में जितना विविधता है, वह किसी अन्य देश में नहीं मिलता। इन गायों का समय के अनुसार जलवायु के अनुसार ढाला होता है और इनके साथी भारतीयों के लिए यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन्हीं गायों से बने उत्पादों का सेवन हमारी दिनचर्या का हिस्सा है।


अंग्रेजी गायों की प्रारंभिक उत्पत्ति:

अंग्रेजी गायें समुद्र पार विदेशों से भारत में आईं थीं और इन्हें 70-80 साल पहले यहां लाया गया था। इन गायों का पालन करने के लिए विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होती है ताकि वे भारतीय जलवायु की अधिक ठंडक और आश्रय को सह सकें।


देसी गायों में विभिन्न नस्लें:

देसी गायों की भारतीय नस्लों में 45 से अधिक विभिन्न प्रजातियां हैं, जैसे कि बछेड़ा, हरियाणा, नागौरी, घ्र, गिर, मलनाड़, आदि। इन नस्लों में गर्मी और वातावरण के हिसाब से अंतर होता है और इन गायों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अधिक होती है।


दूध की गुणवत्ता में अंतर:

देसी गायों का दूध अंग्रेजी गायों के मुकाबले पौष्टिक, स्वादिष्ट, और वसा से भरपूर होता है। इसके अलावा, देसी गायें भारतीय जनता की सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।


अंग्रेजी गायों की आदतें:

अंग्रेजी गायों को पालने के लिए विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होती है और इन्हें सही धूप, ठंडी जगह, और आच्छादन की आवश्यकता होती है। ये गायें बड़ी संख्या में दूध पैदा कर सकती हैं, लेकिन उनका दूध अधिकतर जलवायु के हिसाब से अनुकूलित नहीं होता।


देसी गायों की संरक्षा:

देसी गायों को संरक्षित करने के लिए उचित आवश्यकताएं हैं, जैसे कि उनका सवर्ण संरक्षण, उनकी बच्चों की सुरक्षा, और उनके उत्पादों को बजाये जाने की प्रक्रिया में सुधार।


समापन:

इस ब्लॉग के माध्यम से लोगों को यह सिखने को मिलता है कि देसी गायों का पालन एक सुस्त और सांत्वना भरा अनुभव कैसा होता है, जो उन्हें सशक्त बनाता है और भारतीय सांस्कृतिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्य में उनका महत्व बढ़ाता है।




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